विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने भले ही समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भरा हो लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं. 2022 विधानसभा चुनाव में अगर वह 2012 के जनाधार को दोहराना चाहते हैं तो उन्हें इन चुनौतियों से निपटना होगा.

बीजेपी के अलावा पार्टी को कांग्रेस और बसपा को पछाड़ने के लिए बूथ स्तर पर अपनी मजबूत पकड़ बनानी होगी. जिसके के लिए एक ठोस योजना का धरातल पर उतरना जरूरी है. 11 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में पार्टी ने बसपा को पीछे छोड़ा और दूसरे नंबर की पार्टी बनकर सामने आई. जिससे निश्चित रूप से आत्मविश्वास मिला है.

अखिलेश यादव पर पहले से ही एसी रूम में बैठकर राजनीति करने के आरोप लगे हैं. उन्हें अपनी इस छवि को बदलना होगा. बीजेपी और कांग्रेस जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत बनाने में जुट गयीं हैं. ऐसे में अखिलेश को अब सड़कों पर उतर कर साइकिल को दौड़ाना ही होगा. जिसका इन्तजार उनके कार्यकर्ताओं को भी है.

परिवार की कलह 2017 के विधानसभा चुनाव में खुलकर सामने आई थी. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. सपा संस्थापक मुलायम सिंह के साथ मिलकर पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका अदा करने वाले शिवपाल यादव अब अलग पार्टी बनाकर भतीजे अखिलेश के लिए ही मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. कई अन्य बड़े नेताओं ने भी पार्टी का साथ छोड़ा है. परिवार में अन्य लोग भी नाराज बताए जा रहे हैं. ऐसे में एकजुटता की जरूरत है.

भाजपा हिं’दुत्व और विकास के दावों को लेकर आगे बढ़ रही है तो वहीं कांग्रेस और बसपा भी अपनी जड़े मजबूत बनाने में लगे हैं. बीजेपी की तरह इन दोनों पार्टियों की नजरें भी सपा के मूल वोटर्स पर टिकीं हैं. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए इन सब चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा.

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