लोकसभा चुनाव के दौरान जब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ था तो शायद ही किसी ने ये सोचा होगा कि बसपा को इस गठबंधन का फायदे के अलावा नुकसान भी उठाना पड़ेगा. बसपा को इस गठबंधन का फायदा चुनाव में तो मिला मगर इसके टूटने के बाद पार्टी लगातार नुकसान उठा रही है.
लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से अबतक बीएसपी के मंडल से लेकर प्रदेश स्तर तक के 15 बड़े नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष से लेकर पूर्व कैबिनेट मंत्री, पूर्व सांसद, विधायक और अन्य पदाधिकारियों के नाम शामिल हैं.
सूत्रों के मुताबिक अभी कई और बसपा नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. बसपा छोड़ने वाले नेताओं का कहना है कि बीजेपी में नेताओं की संख्या पहले से ही बहुत ज्यादा है, ऐसे में वहां पर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है. ऐसे में समाजवादी पार्टी उनके लिए बेहतर विकल्प है. यहां पर उनकी तरक्की आसानी से हो सकती है.
नेता के तौर अखिलेश यादव मायावती से बेहतर!
बसपा छोड़ने वाला हर नेता मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाता आया है. कई नेताओं ने यहां तक कह दिया कि जिसका बैग जितना भारी होता है टिकट उसी को मिलता है. इसके इतर अखिलेश यादव पर इस तरह का कोई आरोप नहीं है.
अखिलेश अपनी पार्टी के नेताओं से लगातार संवाद भी करते रहते हैं और उनसे मशविरा भी लिया करते हैं. समाजवादी पार्टी अलग अलग मुद्दों पर प्रदर्शन और आंदोलन भी करती रहती है जबकि बसपा लंबे समय से इससे दूर है.
बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जो भी विकास के काम किए हैं या जो भी लाभ जनता को दिया है उनमें किसी से जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया गया. अखिलेश की छवि बिना भेदभाव विकास करने वाले नेता के तौर पर बनी हुई है.
लोकसभा चुनाव के बाद अब तक जिन बसपा नेताओं ने साइकिल की सवारी की है उनमें प्रमुख रूप से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल, पूर्व कोआर्डिनेटर मिठाई लाल, बीएसपी सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे भूरेलाल, पूर्व कैबिनेट मंत्री कमलाकांत गौतम के नाम प्रमुख हैं.