उत्तर प्रदेश की सियासत के दो प्रमुख चेहरे हैं. एक हैं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और दूसरे हैं समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव. 24 साल पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में काले दिन के नाम से याद किए जाने वाले गेस्ट हाउस कां’ड के बाद से दोनों दल और नेता एक दूसरे के धुर विरोधी हो गए.

तब से लेकर 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तक दोनों के बीच दुश्मनी बदस्तूर कायम थी मगर 2019 चुनावों से पहले अखिलेश यादव ने प्रदेश की सियासत में बड़ा उलटफेर करते हुए दोनों धुर विरोधी दलों का आपस में गठबंधन करा दिया. गठबंधन होने के बावजूद मायावती गेस्ट हाउस मामले में अपने साथ हुई घटना को भुला न सकी.

गठबंधन के दौरान अखिलेश यादव ने मायावती से अपने पिता मुलायम सिंह के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की बात कही थी. दोनों दलों के बीच हुआ ये गठबंधन ज्यादा दिन चल न सका और चुनाव परिणाम आने के बाद मायावती ने अखिलेश यादव पर कई आरोप लगाकर खुद को गठबंधन से अलग कर दिया.

गठबंधन से अलग होने के 6 महीने बाद मायावती ने अचानक चौकाने वाला फैसला लेते हुए मुलायम सिंह यादव के खिलाफ गेस्ट हाउस मामले में मुकदमा वापस लेने का शपथपत्र दे दिया. बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने स्वयं इसकी पुष्टि की है, लेकिन विस्तृत जानकारी कोई नहीं दी है. गठबंधन टूटने के छह माह बाद सपा के प्रति यह नरमी चौंकाने वाली है. मायावती के इस कदम के अब राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं.

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