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नीरज चोपड़ा वो नाम जिसका नाम सुनहरे अक्षरों में भारत के इतिहास में लिखा गया है. नीरज ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाकर देशवासियों का दिल जीत लिया. नीरज की जीत के बाद पूरे देश में उत्साह का माहौल है.

नीरज चोपड़ा ने ऐसे ही गोल्ड मेडल नहीं जीता है बल्कि इसके लिए उन्होंने बहुत त्याग किए हैं. मुफलिसी के बावजूद नीरज ने हार नहीं मानी और लगातार अपनी प्रतिभा में निखार पैदा करते रहे.

साधा ध्यान सिर्फ खेल पर रहे इसलिए नीरज ने एक साल पहले से मोबाइल फोन से दूरी बना ली. वो अधिकतर समय फोन को स्विच ऑफ करके रखते थे. सिर्फ मां से बात करने के लिए नीरज अपने फोन को खोलते थे.

नीरज का परिवार संयुक्त रूप से रहता है. 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे भाई-बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं. नीरज के परिवार की आर्थिके स्थिती बहुत अच्छी नहीं थी, वो डेढ़ लाख का जेवलिन नहीं खरीद सकते थे. नीरज के पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे-तैसे सात हजार रूपये का इंतेजाम किया और उन्हें अभ्यास करने के लिए एक जेवलिन लाकर दिया.

साल 2017 में सेना से जुड़ने के बाद नीरज ने कहा था कि हम किसान परिवार से हैं, परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है, परिवार बहुत मुश्किल से मेरा साथ देता आ रहा है. उन्होंने कहा कि अग प्रशिक्षण जारी रखने के लिए मैं आर्थिक रूप से सक्षम हो गया हूं.

बचपन में नीरज काफी शरारती थे, उन्हें अनुशासित करने के लिए उनके चाचा गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत के शिवाजी स्टेडियम लेकर गए.

नीरज को दौड़ में कोई दिलचस्पी नहीं थी मगर जब उन्होंने कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक अभ्यास करते देखा तो उन्होंने इस खेल में हाथ आजमाने का फैसला किया. आज नीरज इस खेल के शिखर पर पहुंच गए हैं.

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