पब्लिक टॉयलेट्स में आपने अक्सर देखा होगी कि इनके दरवाजे फर्श से कुछ इंच उपर तक ही होते हैं. यानि दरवाजे का पल्ला नीचे फर्श तक नहीं होता है. मालूम पड़ता है कि यह दरवाजे का पल्ला नहीं बल्कि खिड़की का फिट कर दिया गया है. ऑफिस, मल्टीप्लेक्स या मॉल में ऐसा आपने जरुर देखा होगा. हालांकि ऐसा सिर्फ वेस्टर्न टॉयलेट में होता है.

दरअसल, पब्लिक टॉयलेट्स दिनभर इस्तेमाल होते रहते हैं. फर्श लगातार ख़राब होता रहता है. फर्श और दरवाजे के बीच जगह होने से टॉयलेट में पोछा लगाना आसान हो जाता है. वाइपर और मॉप घुमाने में सहूलियत रहती है.

एक दूसरा कारण भी है दरवाजे को छोटा रखने के पीछे. इस दरवाजे से लोगों की प्राइवसी भी बनी रहे और वहां कुछ गलत न हो इसकी भी पारदर्शिता रहे.

वहीं कई ऐसे मामले हुए हैं जब टॉयलेट के अंदर मेडिकल इमरजेंसी हो गयी और दरवाजा बंद होने से बाहर लोगों को मालूम ही नहीं चला कि अंदर किसी को मदद की जरूरत है. ऊँचा दरवाजा होने से अंदर फंस जाने पर बाहर वालों को मालूम चलने की सम्भावना बढ़ जाती है.

इसके अलावा कई बार छोटे बच्चे अंदर से टॉयलेट लॉक कर लेते हैं और उन्हें समझ नहीं आता कि लॉक खोले कैसे. ऐसे में बच्चे को दरवाजे के नीचे से बाहर निकाला जा सकता है. पब्लिक टॉयलेट्स में छोटे दरवाजे लगाने का आइडिया अमेरिका में आया था.

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