महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद सबको ये लग रहा था कि बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिल गया है और दोनों एक बार फिर आसानी से सरकार बना लेंगे. शायद ही किसी ने ये सोचा हो कि नतीजे आने के इतने दिन बीतने के बाद भी वहां पर नई सरकार का गठन नहीं हो पाएगा.

महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल शनिवार को समाप्त हो चुका है. शुक्रवार को ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया था. शिवसेना और बीजेपी दोनों अपने रूख पर कायम हैं. वैसे ये कहावत आम है कि राजनीति में कोई न तो पक्का दोस्त होता है और न ही पक्का दुश्मन. आगे क्या होगा ये कहना थोड़ा मुश्किल है मगर अभी तक तो यही लग रहा है कि शिवसेना बीजेपी के आगे झुकने को तैयार नहीं है.

शिवसेना के पास विकल्प खुले हैं. वो एनसीपी और कांग्रेस के साथ भी मिलकर सरकार बना सकती है. आज ही शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि सभी दलों में कुछ न कुछ मतभेद होते हैं मगर कांग्रेस हमारी दुश्मन नहीं है. अपने मुखपत्र सामना में शिवसेना ने एक बार फिर बीजेपी पर निशाना साधते हुए उसकी तुलना हिटलर से कर डाली.

शिवसेना ने कहा कि पांच साल दूसरों को डर दिखाकर शासन करने वाली टोली आज खुद खौफजदा है. डराकर मार्ग या समर्थन नहीं मिलता. महाराष्ट्र की राजनीति महाराष्ट्र में ही होनी चाहिए. महाराष्ट्र दिल्ली का गुलाम नहीं है. इस बार ऐसी स्थिति है कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन होगा ये उद्धव ठाकरे तय करेंगे. राज्य के बड़े नेता शरद पवार की भूमिका महत्वपूर्ण साबित होगी. कुछ भी हो लेकिन इस बार भाजपा का मुख्यमंत्री न हो, यह महाराष्ट्र का एक स्वर है.

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