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लोकसभा चुनाव 2019 में यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन में परिणाम आने के बाद मायावती ने सपा के कोर वोटरों पर आरोप वगाते हुए गठबंधन से किनारा कर लिया. अब इस समय दोनों ही पार्टियों के बीच एक-दूसरे नेताओं को तोड़ने की होड़ लगी हुई है. हालांकि अभी तक इस होड़ में समावादी पार्टी आगे निकलती हुई दिखाई दे रही है.

गठबंधन टूटने के बाद से बसपा को छोड़कर सपा में जाने की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. इस दौरान एक दर्जन से अधिक नेताओं ने पाला बदलकर सपा को ज्वाइन किया है, जिससे बसपा के प्रमुख नेताओं को पहले ही सचेत कर दिया गया है.

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उपचुनाव में इसका प्रभाव न पड़े, इसको देखते हुए बसपा नेतृ्त्व ने अपनी पार्टी कोआर्डिनेटरों को सख्त आदेश दिया कि वह असंतुष्टों पर नजर रखें, जिससे दलबदल करने से पूर्व ही इन लोगों को पार्टी से निष्कासित किया जा सके.

समाजवादी पार्टी लगातार बसपा को कमजोर बनाने की मुहिम छेड़े हुए है. एक महा के भीतर ही बसपा के प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल, मिठाई लाल, अतहर खां, के.के. ओझा समेत दर्जनों नेता हाथी की सवारी को छोड़कर साईकिल पर सवार हो गए है.

इस दौरान बसपा के कोआर्डिनेटर ने कहा कि उपचुनाव लड़ने का फैसला पार्टी के हित में नहीं रहा. बेहतर होता कि अन्य दलों से गठबंधन करके इस बार भी भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार की घोषणा की जाती, जिससे भाजपा के विजय रथ को रोकने में मदद मिलती.

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