युवा बल्लेबाज़ यशस्वी जायसवाल का अब तक का सफ़र आसान नहीं रहा है. क्रिकेट मैदान पर चुनौतियाओं के अलवा घर की आर्थिक चुनौती भी सामने खड़ी रही, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी दिशा पर आगे बढ़ते रहे. जब आइपीएल में यशस्वी ने डेब्यू किया तो यह उनके लिए बेहद ख़ास पल था. यशस्वी जायसवाल की कामयाब होती यह कहानी इसलिए सभी का ध्यान खींचती है क्योंकि छोटी सी उम्र में ही वह एक कड़ा संघर्ष कर यहां तक पहुंचे हैं.

यशस्वी के लिए सामाजिक-आर्थिक हालात बेहद चुनौतीपूर्ण रहे. छोटी उम्र में ही वह अपना घर छोड़ मुंबई आ गए. यहां उन्होंने गुजर बसर करने के लिए गोलगप्पे बेचे.

मैदानकर्मियों के साथ टेंट को अपना आशियाना बनाया. जिसके बाद यूपी के भदोहि से ताल्लुक़ रखने वाला यह बल्लेबाज़ तक चर्चा में आया, जब विजय हज़ारे ट्रोफ़ी वनडे टूर्नामेंट के एक मतच में झारखंड के ख़िलाफ़ 154 बॉल में 203 रन की टूनि पारी खेली.

मुंबई में अपने संघर्ष को यशस्वी ने परिवार से कभी साझा नहीं किया. उनके पिता खर्चे के लिए कुछ पैसे भेज देते, लेकिन वह काम ही पड़ जाते. यशस्वी ने पैसे कमाने के लिए कई काम किए. आज़ाद मैदान पर बॉल अक्सर खो जाती थी. बॉल ढूँढने वाले को कुछ रुपए दिए जाते थे. यशस्वी ने इससे भी कुछ पैसे कमाने शुरू किए. अच्छा प्रदर्शन करने पर मैन ऑफ़ द मैच के रूप में भी बतौर इनाम कुछ रुपए मिलते.

इस सब के अलवा आज़ाद मैदान में होने वाली रामलीला के दौरान उन्होंने गोलगप्पे भी बहके. कई बार ऐसा होता था कि वह गोलगप्पे बेच रहे होते थे और उनके साथी खिलाड़ी वहीं आ जाते. उन्हें आता देख यशस्वी ठेला छोड़ वहां से भाग जाते. जब ठेला मलिक उनसे पूछता तो वह कहते, अगर वो मुझे इस तरह देख लेंगे तो क्या होगा. मैं सबकच कर सकता हुं पर उन्हें गोलगप्पे नहीं खिला सकता.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here