मुंबई चकाचौंध वाला सफ़र है. हर कोई पोटली में अपने ख्वाब लिए यहां पहुंचता है. इस आस में कि एक दिन वह इस मायानगरी में अपनी मंजिल पा लेगा. शहर ने ब्रिटिश इंडिया से पहले से लेकर अब तक सफ़र में कई दौर देखे हैं. ब्रिटिश राज के दौर के मुंबई से अब का मुंबई काफी बदल गया है.
मुंबई 7 आइलैंड से मिलकर बना था. छोटा कोलाबा, वरली, माजगांव, परेल, कोलाबा, माहिम, बोम्बे टापू. बोम्बे टापू मुंबई का सबसे पुराना टापू है जिसका जिक्र मौर्यकालीन इतिहास तक में मिलता है. आज की डोंगरी से लेकर मालाबार हिल तक फैला हुआ है बोम्बे टापू.
16वीं सदी में पुर्तगाली शासकों ने मुंबई को हासिल किया. 100 साल से ज्यादा तक इस पर कब्ज़ा बनाए रखा. जब 17वीं सदी में इंग्लैण्ड के सम्राट चार्ल्स-2 ने पुर्तगाली राजकन्य कैथरीन डी ब्रिगेंजा से शादी की, तो पुर्तगालियों ने शहर को ही दहेज़ में देकर अंग्रेजों को दे दिया.
चार्ल्स-2 को अंदाजा ही नहीं था कि कितनी जमीन उनके पास आ गयी है. बाद में पता चला इन टापुओं पर कम्युनिकेशन की बड़ी समस्या है. जिसके बाद इनको ईस्ट इंडिया कम्पनी को किराए पर दे दिया गया. वो भी महज 10 पाउंड सालाना पर.
कंपनी ने बिखरे हुए इन सातों द्वीपों को जोड़ दिया. धीरे-धीरे मुंबई को शक्ल मिलती गयी. 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी सूरत से मुंबई आ गयी. तब इसका नाम बोम्बे प्रोविंस हुआ करता था. इससे पहले पुर्तगाली इसे बाम बोहिया कहते थे. 18वीं सदी में ये शहर तेजी के साथ बदला.
1708 में माहिम और सायन के बीच एक कॉजवे बनाया गया. कॉजवे यानि एक ऐसी सड़क जो पानी के ऊपर से होकर गुजरती और दो टापुओं को जोड़ती. धीरे-धीरे पहाड़ियों को समतल किया गया. दलदल में मलबा भरा गया. 19वीं सदी के अंत तक सारे टापू एक दूसरे से जुड़ चुके थे. शहर का क्षेत्रफल बढ़कर 484 स्क्वायर किलोमीटर हो चुका था.
1853 में एशिया की पहली रेलवे लाइन मुंबई से लेकर ठाणे के बीच बिछाई गयी. 19वीं सदी के अंत तक आते आते बोम्बे एक खूबसूरत शहर की शक्ल ले चुका था. 20वीं सदी की शुरुआत में ही बोम्बे की जनसँख्या 10 लाख तक पहुंच चुकी थी. कलकत्ता के बाद बोम्बे दूसरा सबसे बड़ा शहर था.