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श्रावण मास में शिव जी की पूजा करने का अपना अलग ही महत्व होता है. माना जाता है कि भगवान शिव के पूजन का ये सबसे उत्तम मास होता है इस माह में भगवान शिव को दूध और जल चढाया जाता है ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को दूध अतिप्रिय है और इसी कारण दूध चढ़ाने भगवान प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूर्ण करते हैं.

कहा जाता है कि जब दैत्य राजबली ने तीनों लोकों पर अपना कब्जा किया ता, तब भगवान विष्णु ने दोनों को समुद्र मंथन करने के लिए कहा और इसमें से निकले अमृत को देवों को पीने को कहा. भगवान विष्णु ने देवों से इस दौरान कहा कि ये कार्य दैत्यों के साथ मिलकर किया जाएगा तो बहुत ही आसानी से हो जाएगा. इसके बाद देवता और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया. इसी समुद्र मंतन में विष निकला.

उस विष की ज्वाला में सभी देवता औ दैत्य जलने लगे, तब उस विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया. इस विष की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि उसको सह पाना शिव के अलावा किसी देव में दम नहीं था. इस विष को भगवान शिव ने भी पी लिया था और ये उनके कंठ से नीचे उतरने लगा. जिसके प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया वहीं उनकी हथेली से थोड़ा सा विष पृथ्वी पर गिर गया जिससे सांप, बिच्छू आदि विषैले जंतुओं ने ग्रहण कर लिया.

विष की तीव्रता को देखते हुए शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान पर जल अर्पित करना शुरु कर दिया. जल की शीतलता से विष का प्रभाव थोड़ा कम होने लगा. इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से दूध ग्रहण करने का आग्रह किया ताकि विष का प्रभाव खत्म हो जाए. जल और दूध के ग्रहण से भगवान शिव को शांति मिली. तब से ही शिवलिंग पर दूध चढाने की परंपरा चली आ रही है.

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