रेलवे के नक़्शे पर अब फिर से बनारस लौट आया है. मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस रेलवे स्टेशन कर दिया गया है. इसके साथ ही 64 साल पुराना इतिहास दोहराया गया है. पूर्वोत्तर रेलवे के अधिकारियों ने साइनबोर्ड को स्टेशन के नए नाम से बनारस के रूप में बदल दिया.

इस रेलवे स्टेशन का इतिहास भारत में जब रेल सेवा शुरू हुई उससे जुड़ा है. ब्रिटिश काल के दौरान बंगाल से पूर्वोत्तर रेलवे के विस्तार के तहत वाराणसी में रेलवे स्टेशन बना था. जिसका नाम रखा गया बनारस कैंट.

उत्तर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री डॉक्टर सम्पूर्णानंद ने बनारस जिले का नाम बदलकर वाराणसी किया था. जबकि 24 मई 1956 को बनारस कैंट रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर वाराणसी जंक्शन कर दिया गया.

ये शहर अलग-अलग नामों से जाना गया है. इसके कई नाम हैं. जैसे काशी, काशिक, बनारस, वाराणसी, वाराणशी, अवमुक्त, आनंदवन, रुद्रावास.

वाराणसी भी प्राचीन नाम है. इसका उल्लेख बौद्ध जातक कथाओं और हिन्दू पुराणों में है. महाभारत में कई बार इसका जिक्र है. हालांकि पाली भाषा में नाम बनारसी था. जो बाद में बनारस के नाम में आया. ये शहर बनारस के नाम से अधिक जाना जाता है. हालांकि आधिकारिक तौर पर अब इसका नाम वाराणसी है.

बनारस के राजा को काशी नरेश या बनारस नरेश या काशी राज कहा जाता था. आजादी से पहले ही बनारस के तत्कालीन महाराजा विभूतिनारायण सिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के पत्र का हस्ताक्षर कर दिए. आजादी के बाद जब उत्तर प्रदेश बना तो इसमें टिहरी गढ़वाल, रामपुर और बनारस रियासत को मिलाया गया.

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