गरीबी क्या होती है इसके बारे में वही व्यक्ति बता सकता है जो उस दौर से गुजरा हो, जिसने गरीबी को करीब से देखा हो. आज के इस दौर में कई लोग सड़क पर भीख मांगते हुए नजर आते हैं लेकिन एक ऐसा भी व्यक्ति है जो ऐसा करने से लोगों को रोक रहा है. उस व्यक्ति का नाम है हरेकला हजब्बा.
हरेकला हजब्बा जो कि कर्नाटक के मंगलौर के रहने वाले हैं. हजब्बा यूं तो कहने के लिए अनपढ़ हैं लेकिन समाज में फैले अंधकार को छांटने का प्रयास कर रहे हैं. डेक्कन क्रानिकल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 30 साल से संतरे बेचकर अपना गुजारा करने वाले हजब्बा ने पाई-पाई जोड़कर अपने गांव में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल का निर्माण करा दिया. यही नहीं अब उन्होंने एक कालेज को और बनाने का सपना देखा है.
हजब्बा मंगलौर से करीब 25 किलोमीटर दूर हरकेला में नई पप्डु गांव के रहने वाले हैं वह स्थानीय लोगों के लिए किसी संत से कम नहीं हैं, इसी कारण उन्हें अक्षरा सांता के नाम से जाता है.
हजब्बा का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था. शुरुआती जीवन में ही उन्होंने बीड़ी बनाने का काम शुरु कर दिया था. हौसला बढ़ता गया और उन्होंने संतरे बेचने का काम शुरु कर दिया. एक दिन दो विदेशी पर्यटकों से मुलाकात हुई वो लोग संतरे खरीदना चाहते थे लेकिन वो अंग्रेजी भाषा में बात कर रहे थे जिसका उत्तर देने में वो असमर्थ था क्योंकि वो इस भाषा को लेकर अज्ञान था.
कहा कि विदेशी लोगों ने उससे संतरे की कीमत अंग्रेजी में पूछी लेकिन भाषा की अज्ञानता के कारण वो जवाब नहीं दे सका और वो लोग वहां से चले गए, इस घटना के बाद से ही मैं अपने आपको अपमानित महसूस कर रहा था.
हजब्बा ने इस दौरान ही ये मन में ठान लिया कि जिस दौर से वे गुजरे हैं वो नहीं चाहते थे कि कोई दूसरा भी उस दौर से गुजरे ऐसे में उन्होंने मन में ठान लिया कि वो गांव के गरीब बच्चों के लिए स्कूल का निर्माण कराके मानेंगे.
वहीं उनकी पत्नी मामूना को अक्सर इस बात की शिकायत रहती थी कि उनके भी तीन बच्चे हैं लेकिन वो दूसरों के लिए आखिर पैसा क्यों खर्च कर रहे हैं लेकिन बाद में उन्होंने भी हजब्बा का सहयोग करना चालू कर दिया.
साल 1999 में हजब्बा ने अपने सपनों को पंख देने का काम शुरु किया. इस दौरान उन्होंने अपने गांव में एक मदरसे की शुरुआत की. जब वो स्कूल शुरु हुआ तो महज 28 छात्र ही थे. लेकिन उनके मन में इस मदरसे को स्कूल में कैसे तब्दील किया जाए ये सपना पल रहा था साल 2004 में हजब्बा में स्कूल बनाने के लिए जमीन खरीदी.
लेकिन ये काफी नहीं था ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों ना उद्योगपतियों और नेताओं से मदद की गुहार लगाई जाए. कहा कि एक बार मैं पैसों के लिए एक बहुत ही धनी व्यक्ति के पास गया लेकिन उसने इस दौरान मेरी मदद तो की नहीं इसके उलट उसने अपने पालतू कुत्ते मेरे पीछे छोड़ दिए. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. अपने सपने को साकार करने के लिए वे ड़टे रहे.
कहा जाता है कि बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है अब तक उन्होंने इतनी जमा पूंजी कर ली थी कि जिसकी बदौलत उन्होंने जमीन पर एक छोटे से प्राथमिक विद्यालय का निर्माण किया जा सके. फिर एक कन्नड अखबार होसा दिगणठा ने हजब्बा की कहानी को प्रकाशित किया.
सीएनएन आईबीएन ने हजब्बा को अपने असली हीरो पुरुस्कार के नाम के लिए नामित किया. और स्कूल के निर्माण के लिए 5 लाख रुपये नगद पुरुस्कार प्रदान किया. इसके बाद उनका सपना साकार हो गया.
Village Ki Chhori ||
जाने क्यों इस संतरे वाले को मिला सरकार से Padma Shri#PadmaAwards2020 #PadmaShri #HarekalaHajabba@mahima_1212 की रिपोर्ट pic.twitter.com/QRIdYwE2ym
— MyNation (@MyNation) February 2, 2020
Harekala Hajabba has educated poor children in his village, Newpadupu, in Dakshin Kannada through meager earnings from selling oranges in Mangalore. He will be recognized with Padma Shri. #PeoplesPadma #PadmaAwards2020 pic.twitter.com/O6YV6lxP3Q
— MyGovIndia (@mygovindia) January 25, 2020