बीते 10 सालों में जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती के रकबे में उछाल देखा गया है. यहां 3000 किलोग्राम लैवेंडर ऑयल के वार्षिक उत्पाद के साथ 900 एकड़ के अनुमानित रकबे में लैवेंडर उगाया जा रहा है. सीएसआईआर-आईआईआईएम फसल के रकबे को बढ़ा रहा है.

यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लैवेंडर ऑय की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए लैवेंडर की खेती के रकबे को अगले 2 से 3 वर्षों में 1500 हेक्टर बढ़ाना चाहता है, ताकि उत्पादन की एक स्थायी व्यवस्था स्थापित की जा सके.

क्या है लैवेंडर और कैसे होती है खेती?

लैवेंडर एक बार लगाने के बाद 10 से 12 साल तक रहता है. यह बारहमासी फसल है. बंजर भूमि पर भी इसकी खेती की जा सकती है. इसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता भी नहीं है. साथ ही दूसरी फसलों को साथ में उगाया जा सकता है. बताया जाता है कि लैवेंडर एक यूरोपीयन क्रॉप है. इसे पहले कश्मीर में लाया गया. जिसके बाद जम्मू के डोडा, किश्तवाड़ और भारदवा क्षेत्रों में लगाया. इसका फायदा देखकर हजारों किसान आज लैवेंडर की खेती करने की चाहत रखते हैं.

लैवेंडर जून-जुलाई के दौरान 30-40 दिनों के लिए एक बार फूल उत्पादन करता है. इससे लैवेंडर तेल, लैवेंडर वाटर, ड्राई फ्लावर और अन्य चीजें मिलती हैं. एक हेक्टेयर में लगाईं फसल से हर साल कम से कम 40 से 50 किलोग्राम तेल निकलेगा. लैवेंडर तेल का मूल्य आज करीब 10 हजार रूपये प्रति किलो है.

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