पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन में कईयों की नौकरी चली गयी. काफी लोगों को निकाला गया तो कई लोगों को मजबूरी में नौकरी छोड़नी पड़ी. ऐसा ही हुआ मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के एक युवा के साथ. वह लॉकडाउन में गांव में ही फंस गया. जिसके बाद मशहूर फार्म कम्पनी की नौकरी छोड़ जैविक पद्धति से खेती शुरू की.

मालवा जिले के सलियाखेड़ी में रहने वाले युवराज पाटीदार फार्मा कम्पनी ल्यूपिन में सीनियर क्वालिटी कंट्रोलर की पोस्ट पर काम करते थे.

लॉकडाउन में वह गांव में ही फंस गए. घर पर बिना काम के बैठे युवराज ने अपने पिता के साथ खेती करने का मन बनाया, लेकिन परम्परागत खेती से हटकर पपीते की खेती शुरू की. मोबाइल पर खेती की उन्नत तकनीकी को बारीकी से समझा. पिता की 22 बीघा जमीन में से 2 बीघे में जैविक पद्धति से पपीते की खेती शुरू की.

युवराज के पिता सोयाबीन, गेंहू, चने आदि की ही फसल करते थे, लेकिन युवराज ने हटकर खेती करने की ठानी. पिता का भी साथ मिला और युवराज ने पहले केवल दो बीघा जमीन पर पौधे लगाए. ड्रिप लाइन डालकर पानी की कमी को दूर किया. समय-समय पर जैविक खाद व जैविक रसायन डालकर पौधों को बड़ा किया.

युवराज का कहना है कि शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई और शहर से नौकरी छोड़ खेती करना अजीब भी लगा, लेकिन धीरे-धीरे खेत में काम करने में आनंद आने लगा. युवराज बताते हैं कि एक वर्ष में ही अच्छी पैदावार हुई. आगे तीन वर्षों तक इससे फल लिए जा सकेंगे. युवराज को शुरू में पपीतों को बेचने में भी दिक्कत आई, मंडियों में भाव ही कम मिला.

जिसके बाद युवराज ने खेत के बाहर ही पपीतों को बेचना शुरू किया. साथ ही ग्राहकों को ऑफर दिया कि खेत में से जो मर्जी हो वह पपीता तोड़ कर अपनी पसंद का खरीद सकते है. इससे राहगीरों का अच्छा रिस्पांस मिला. युवराज का खेत राजमार्ग के किनारे ही है.

युवराज बताते हैं कि जहां पहले खेती में एक बीघा से तीस चालीस हजार रूपये मिल पाते थे, लेकिन पपीते की खेती में उन्हें 5 से 6 लाख रूपये की सालाना आय होगी.

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