बाजार में आज कई तरह के natural loofah(प्राकृतिक लूफा) उपलब्ध हैं. ये सभी पेड़-पौधों से ही बन रहे हैं. यानि बाजार में आप तोरई या खसमस के फाइबर के बने हुए इको-फ्रेंडली लूफा खरीद सकते हैं. लोगों के बीच तोरई के लूफा को ज्यादा पसंद किया जा रहा है.
शायद आपको जानकार हैरानी हो कि सब्जी या जूस के लिए इस्तेमाल होने वाली पोषणयुक्त तोरई को नहाने के लिए लूफा और बर्तन धोने के स्क्रब के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया की अमेजन वेबसाईट पर तोरई से बने लूफा की कीमत हजारों में है.
कनाडा की एक कम्पनी के इस नेचुरल लूफा की कीमत 21.68 डॉलर यानी करीब 1613 रूपये है. वहीं भारतीयों के लिए नेचुरल लूफा उतना ही पुराना है जितनी कि तोरई. जैव विज्ञानं में तोरई ‘खीरा परिवार’ से ताल्लुक रखती है और इनके जींस को लूफा कहते हैं. यहीं से लूफा शब्द आया है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि हजारों साल पहले तोरई की उत्पत्ति एशिया या अफ्रीका में हुई थी. लेकिन इसकी खेती भारत से शुरू हुई. धीरे-धीरे यह यूरोप के लोगों तक पहुंच गयी. सैकड़ों सालों पहले से ही तोरई को जूस, सब्जी के साथ-साथ साफ़-सफाई के काम में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. जब तक तोरई हरी और कच्ची रहती है, यह खाद्य उत्पाद की तरह इस्तेमाल होती है.
जब यह पूरी तरह से सूखने लगती है तो छिलके को उतरकर बीजों को निकालकर इसे नहाने के लिए लूफा और बर्तन साफ़ करने के लिए स्क्रब के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. दुनियाभर में इसे अलग-अलग कामों में इस्तेमाल लिया जा रहा है.
बताया जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तोरई के लूफा को डीजल इंजन आयल फिल्टर्स और स्टीम इंजन फिल्टर्स के लिए काफी इस्तेमाल किया गया था. इसके अलावा सौन्दर्य के लिए भी पुराने समय में इसका इस्तेमाल किया गया है.