संघर्षों से ड़रकर नौका पार नहीं होता, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती इन पंक्तियों को चरित्रार्थ करने वाले बिहार के आरा जिले के रहने वाले बालबांका तिवारी भारतीय मिलिट्री एकेडमी से एकजुट हो गए है, उन्होंने भारतीय सेना में एक सिपाही से लेकर अफसर तक का सफर तय किए हैं, उनकी सफलता से उनके घर ही नहीं गांव में भी जश्न का माहौल है.

बालबांका के परिवार वालों ने उन्हें संघर्ष करते देखा है वो 16 साल की उम्र से ही नौकरी कर रहे हैं वो कभी 50 से 100 रुपये कमाने के लिए 12-12 घंटे काम करते थे. अपनी मेहनत और द्रढ़ता से वो लंबे सफर तय कर चुके हैं. बालबांका 12 वीं क्लास के बाद ही बिहार के आरा के अपने गांव से निकलकर ओडिशा के राउरकेला चले गए. वहां लोहे की फैक्ट्री में काम करने लगे इसके बाद वो नमकीन की फैक्ट्री में काम करने चले गए, लेकिन इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा.

साल 2012 में उन्होंने भोपाल के EME सेंटर में अपने दूसरे प्रयास में सफलता हासिल की. इस दौरान उन्होंने अगले 5 साल सिपाही के रुप में काम किया. इस दौरान आर्मी कैडेट कालेज के लिए पढ़ाई को जारी रखा. साल 2017 में उन्हें सफलता मिली और अब वो अफसर बन गए.

उनकी सफलता से गांव में जश्न का माहौल है आर्मी में अफसर बनना उनके लिए सपने जैसा था जिसे उन्होंने कठिन परिश्रम से हासिल कर लिया है अब पूरे गांव में जश्न का माहौल है.

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