देश की राजधानी दिल्ली के अलावा आसपास के इलाकों में इन दिनों वायु प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है. जिसका बड़ा कारण पराली जलाने को माना जाता है. एक युवा किसान ने इस समस्या का समाधान ऐसा खोजा कि अच्छी कमाई का जरिया बना लिया. इस सीजन में दो महीने में 50 लाख रूपये की कमाई कर ली है. इसके अलावा 200 युवाओं को रोजगार भी दिया.

हरियाणा के कैथल में एक गांव में रहने वाली 32 वर्षीय वीरेन्द्र यादव ऑस्ट्रेलिया में जा बसे थे. ऑस्ट्रेलिया की स्थायी नागरिकता मिल चुकी थी, लेकिन मन वहां नहीं लगा और पत्नी व दोनों बेटियों को लेकर अपने गांव लौट आए.

गांव आकर खेती शुरू करदी. फसल अवशेष के निपटान को लेकर समस्या आई. पराली जलाने से उठने वाले प्रदूषण ने दोनों बेटियों की सेहत को आफत में डाल दिया तो कुछ अलग करने की ठान ली. वीरेन्द्र की दोनों बेटियों को प्रदूषण की वजह से एलर्जी हो गयी. इस बारे में वह बताते हैं कि तब मैंने गभीरता से सोचा की इसका समाधान कैसे हो सकता है.

कहा कि उन्हें पता चला कि पराली को बेचा जा सकता है. क्षेत्र में स्थित एग्रो एनर्जी प्लांट और पेपर मिल से संपर्क किया, जहां पराली का समुचित मूल्य दिए जाने का आश्वासन मिला. तब योजनाबद्ध तरीके से काम किया. न सिर्फ अपने खेतों से बल्कि अन्य किसानों से भी पराली खरीदकर बेचने का काम शुरू कर दिया. इसमें अहम था पराली को दबाकर इसे सघन गट्टे बनाने वाले उपकरण का इंतजाम, जिससे इसे ले जाने में आसान रहे.

उन्होंने किसान कल्याण विभाग से 50 फीसदी अनुदान पर तीन स्ट्रा बेलर खरीदे. कुछ ही हफ्ते पहले एक बेलर और खरीदा है. एक बेलर की कीमत 15 लाख रूपये है. बेलर पराली को आयताकार गट्टे बनाने के लिए है. वीरेन्द्र ने बताया कि दो महीने के धान के सीजन में उन्होंने तीन हजार एकड़ से 70 हजार क्विंटल पराली के गट्टे बनाए. 135 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 50 हजार क्विंटल अप्राली गांव कांगथली के सुखबीर एग्रो एनर्जी प्लांट में बेचीं.

अपनी कमाई को लेकर बताया कि इस सीजन में अब तक 94 लाख 50 हजार रूपये का कारोबार हो चुका है. इसमें से खर्च निकालकर उनका मुनाफा 50 लाख रूपये बनता है. जनवरी तक कमाई और होगी.

वीरेन्द्र साल 2008 में ऑस्ट्रेलिया गए थे. 2011 में शादी के बाद पत्नी को भी साथ ले गए. वहां फल-सब्जियों का थोक कारोबार किया. सालाना 35 लाख रूपये की कमाई थी. साल 2017 में अपने पैतृक गांव लौट आए.

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