साल 2012 में दिल्ली की सर्द रातें. 18-19 साल का लड़का. जेब में मात्र 30 रूपये. जेब और पेट दोनों खाली देख मन बदलने लगा और लगा कि घर लौट जाऊं. फिर ख्याल आया कि उस सपने का क्या होगा जो वो अपने साथ ओडिशा से दिल्ली लेकर आया है. सपने को लेकर जुनून इस कदर था कुछ नहीं तो सिम कार्ड ही सड़कों पर घूम-घूम कर बेचने लगा. दिल्ली की सड़कों पर सिम कार्ड बेचने वाला वह लड़का आज एक सफल बिजनेसमैन बन गया है. दुनिया के 80 देशों के 800 शहरों में अपना कारोबार फैला लिया है.

यह कहानी है ओयो रूम्स (OYO Rooms) के फाउंडर रितेश अग्रवाल की. ओडिशा के मारवाड़ी परिवार में 1993 में जन्में रितेश को उनके परिवार वाले इंजीनियर बनाना चाहते थे. उन्हें कोटा भेजा गया. 10वीं बाद कोटा गए रितेश का मन वहां नहीं लग पाया. वह दिल्ली आ गए. रितेश का मन नौकरी पर नहीं बल्कि बिजनेस पर लगा हुआ था. दिल्ली में रहना आसान नहीं था. खुद के खर्च के लिए पैसे नहीं थे तो कारोबार की शुरुआत का कैसे सोचते. फिर भी हिम्मत नहीं हारी और रास्ते पर ही घूम-घूम कर सिम कार्ड बेचना शुरू कर दिया.

कैसे हुई OYO की शुरुआत?

यहां से उनके कारोबार का सफ़र शुरू हो गया. साल 2013 में रितेश को थिएल फेलोशिप के लिए चुना गया. जिससे उन्हें करीब 75 लाख रूपये मिलने थे. इसी पैसे से उन्होंने oyo रूम्स की शुरुआत कर दी. जिसके लिए उन्होंने लंबा रिसर्च किया. कंपनी का नाम उन्होंने oreval stays रखा. इस प्लेटफ़ॉर्म के जरिए वो किफायती दरो पर, आसानी से होटल बुकिंग की सुविधा उपलब्ध करवाते थे.

बदला कंपनी का नाम 

रितेश का यह कारोबार तेजी नहीं पकड़ रहा था. उन्हें एहसास हुआ कि लोग कंपनी के नाम के साथ खुद को कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर oyo rooms कर लिया. साल 2013 में शुरू हुई यह कंपनी महज 8 साल में ही 75 हजार करोड़ की कंपनी बन गयी. oyo का कारोबार (Business) 80 देशो के 800 शहरों तक फैल चुका है. कंपनी किफायती दरों पर स्टैण्डर्ड रूम्स और कपल फ्रेंडली ऑप्शन्स अपने कस्टमर्स को देती है.

रितेश भारत के अरबपतियों में शामिल हैं. रितेश की कुल संपत्ति 1 बिलियन डॉलर तक पहुँच गयी है.

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