गांवों में अगर किसी तरह सड़कों का निर्माण हो भी जाए तो उसकी गुणवत्ता इस प्रकार की होती है कि कुछ सालों में ही वह सड़क चलने लायक नहीं रहती है. लेकिन, अब इस तरह की तकनीक से सड़कों का निर्माण किया जाएगा. जिसका खर्च भी कम आएगा और टिकाऊ भी होंगी. पर्यावरण भी अनुकूल रहेगा. इसके निर्माण के लिए पहाड़ों से गिट्टी लेन की जरूरत नहीं होगी.

इस नयी तकनीक से साढ़े पांच मीटर चौड़ी सड़क बनाने का प्रयोग होने जा रहा है. ग्रामीण अभियंत्रण विभाग ने जनवरी में केंद्र सरकार को 1215 सड़कों का डीपीआर भेजा था. जिसमें 898 सड़क निर्माण को स्वीकृति मिली है. जबकि 299 सड़कों पर अधिक लागत आने का हवाला देकर पत्रावली लौटा दी गयी है.

केंद्र सरकार ने लागत घटाने के लिए एफडीआर यानी फुल डेप्थ रिक्लेमेशन तकनीक अपनाने पर जोर दिया है. इस तकनीक को जानने के लिए ग्राम्य विकास विभाग ने विशेषज्ञों का दल आन्ध्र प्रदेश के विजयवाड़ा भेजा.

क्या है ये नयी तकनीक?

राज्य तकनीकी अधिकारी डीडी पाठक ने बताया कि डेप्थ रिक्लेमेशन तकनीक में पुरानी सड़कों के पूरे क्रस्ट का दोबारा इस्तेमाल हो जाता है. स्टोन एग्रीगेट यानि गिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती. इसमें सड़क का निर्माण तेजी से भी होता है. साथ ही मरम्मत में खर्च भी कम आता है. विशेष मशीनों से क्रस्ट व सीमेंट आदि को मिलकार सड़क बनती है. पायलट योजना की सड़कें साढ़े पांच मीटर चौड़ी होंगी. अगर मिट्टी की सड़क भी है तो गिट्टी का प्रयोग कर कम लागत में सड़क बन जाएगी.

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