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ये बात साल 1970 की है जब गंजम जिले के एक गांव में रहने वाले सीमांचल मोहापात्रा अपना घर छोड़कर चले गए थे. वे इस दौरान काम की तलाश में मुंबई गए थे. शादी के महज दो साल बाद ही उन्होंने अपने घर को छोड़ दिया था. वो बाहर जाकर रोजगार की तलाश में थे जिससे परिवार का जीवनयापन किया जा सके.

उन्होंने सोचा था कि वो कुछ महीनों तक वहां शहर में पैसा कमाएंगे और फिर वापस गांव में आ जाएंगे लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका. मोहापात्रा गुरुवार की दोपहर वापस तो आए लेकिन 40 वर्षों के बाद. जब उन्होंने अपने घर को छोड़ा था तब वो महज 27 साल के थे. अब वो बिना लाठी के नहीं चल सकते. उनकी पत्नी और बेटी भी थी लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं रही. उनके भतीजे दुरबा चरण राणा ने बताया कि वो और उनके चाचा के बाकी जान पहचान वाले लोग बेहद खुश है.

चार दशक बाद लौटे घरः

राणा ने बताया कि जब उनके चाचा गांव छोड़ने के बाद वापस नहीं आए थे तो पूरे परिवार ने उनकी खोजबीन की. असम से लेकर मुंबई तक उन्हें खोजा गया, किसी ने इस दौरान कहा कि वो भुवनेश्वर या कटक चले गए होंगे तो इस दौरान हम लोग भी वहां गए खोजबीन की लेकिन नतीजा सिफर रहा. अंततः हार मानकर हम लोगों ने उन्हें खोजना बंद कर दिया था.

मोहापात्रा ऐसे में कभी भी घर नहीं आ पाते अगर रोटी बैंक नाम के एनजीओ ने मदद ना की होती, ये एनजीओ एमपी के बुरहानपुर में है, संजय शिंदे की देखरेख में ये एनजीओ कार्यरत है. दरअसल 40 साल पहले मोहापात्रा मुंबई पहुंचे तो वहां एक कांट्रैक्टर के साथ काम करने लगे लेकिन काम समाप्त होने के बाद भी कांट्रैक्टर ने पैसे नहीं दिए जिसके बाद मोहापात्रा वहां से ट्रेन में चढ़ गए.

कुछ इस तरह की थी कहानीः

उन्होंने सोचा था कि ये ट्रेन बरहामपुर जाएगी जोकि ओडिशा में उनके गांव के पास ही थी. लेकिन ट्रेन जा रही थी मध्यप्रदेश के बुरहानपुर. जब वो वहां पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया उनके पास इस दौरान पैसे भी नहीं थे और टिकट भी नहीं थी. उन्हें जेल में डाल दिया गया.

हालांकि बाद में पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. वो हिंदी भी अच्छे से नहीं बोल पा रहे थे. इसी कारण वो अपने घर नहीं जा पा रहे थे. इसके बाद वो वहीं पर रहकर छोटी मोटी दुकान में काम करने लगे. ऐसे उनकी जिंदगी कटती रही लेकिन उम्र के एक पड़ाव के बाद वो थक चुके थे. अब वो काम भी नहीं कर पाते थे. उनके पास रहने की भी कोई जगह नहीं थी.

रोटी बैंक बनी मददगारः

रोटी बैंक के द्वारा दिए जा रहे खाने पर ही वो पल रहे थे. जब शिंदे मोहापात्रा से मिले तो उन्होंने एक बात कही कि वो मरने से पहले तिकारपाड़ा जाना चाहते हैं, शिंदे ने बताया कि उन्होंने इलाके में ऐसे लोगों को खोजना शुरु किया जो उडिया बोल सकते थे लेकिन बात इसके बाद भी नहीं मनी. शिंदे ने इसके बाद अपने जान पहचान वाले लोगों से बात करनी शुरु की.

उन्होंने इस दौरान कहा कि अगर कोई ओडिशा में रहत हो तो उनसे संपर्क करे. मोहापात्रा के भतीजे ने ही उनसे संपर्क किया, राठी ने कई बार उनके वीडियोज देखे, कुछ गांव के नाम उनके समझ में आए, कुछ परिवार के लोगों के नाम समझ आए. गूगल मैप्स की मदद से उन्होंने देखा कि एक गांव है जिसका नाम है sahadeb tikarpara, इसके बाद उन्होंने आईपीएस अरुण बोथरा से मदद मांगी.

उन्होंने गंजम के एसपी ब्रिजेश राय से मदद मांगी, पुलिस ने पूछताछ के लिए गांव में अपनी टीम भेजी, गांव के सरपंच ने उन्हें मोहापात्रा के परिवार से मिलवाया. जल्द ही वीडियो काल का प्रबंध करवाया गया जिसमें वो अपने भतीजे दूरबा राणा को पहचान गए. बुधवार को राठी ने उनकी टिकट बुक की और वो अपने चाचा को लेने गए. राणा कहते हैं कि हमें लगता था कि चाचा कभी वापस नहीं आएंगे. मेरे दादा-दादी उन्हें देखे बिना ही दुनिया से चले गए.

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