अगले चार दशकों में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में गर्मियों में हीट वेव बढ़ने की आशंका जताई गयी है. इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर माना जा रहा है. सीयूएसबी के पर्यावरण विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ. प्रधान पार्थ सारथी ने अपने ताजा रिसर्च में ये दावा किया है. प्रो. सारथी बिहार सरकार के जलवायु परिवर्तन पर बिहार राज्य कार्ययोजना की संचालन समिति के सदस्य भी हैं.

उन्होंने साल 1951 से साल 2010 तक की अवधि में भारत की सतह के तापमान का अध्ययन कर कहा कि बीते दशकों में गर्मियों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हुई है.

वर्ष 1971 से 2005 के दौरान अधिकतम और न्यूनतम तापमान का विश्लेषण कर प्रो सारथी ने यह रिपोर्ट तैयार की है. उन्होंने इसमें पाया कि मार्च और अप्रैल में अधिकतम तापमान व दिसंबर व फरवरी में न्यूनतम पारे में हैरान करने वाली बढ़ोतरी देखी गयी है.

उन्होंने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ प्योर एंड अप्लाइड जियोफिजिक्स में प्रकाशित अपने शोध पत्र का हवाला देते हुए कहा कि 2021 और 2055 के दौरान सूबे में गर्मी बढ़ने की वजह से हीट वेव की आवृत्ति बढ़ेगी. इसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

गर्मियों के दौरान अधिकतम औसत तापमान में काफी बढ़ोतरी हुई है, जबकि सर्दियों में भी न्यूनतम तापमान में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. इस साल सर्दी के मौसम की स्थिति को देखें तो कुछ दिनों को छोड़कर बाकी दिनों में रातें अपेक्षाकृत गर्म रही हैं.

सर्दियों में बढ़ते न्यूनतम तापमान के खतरे से आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि इसका असर सर्दी के मौसमी फसलों पर भी पड़ेगा. गेंहू में नए तरह के कीट लगेंगे और पैदावार प्रभावित होगी. उन्होंने बताया कि विभिन्न ग्लोबल वार्मिंग, उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत जलवायु मॉडल सिमुलेशन में कुल मिलकर 0.2 से 0.50 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी वर्ष 2021 और 2055 के बीच देखी जाएगी.

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