कहावत है कि दिल्ली अभी दूर है. इसे आपने अक्सर सुना होगा और शायद कभी न कभी इस्तेमाल भी किया हो. क्या आपको मालूम है कि इस कहावत को पहली बार किसने बोला था और बोला क्यों था. इस कहावत के पीछे एक दिलचस्प किस्सा है. ये शब्द एक सूफी फ़कीर के मुंह से निकले थे.

करीब सात सौ साल पहले तुगलक वंश का एक शासक गयासुद्दीन तुगलक. गयासुद्दीन ने भारत में तुगलक वंश की स्थापना की. गयासुद्दीन 1320 में दिल्ली की गद्दी पर बैठा. उसी समय एक फ़कीर हुए जिन्हें निजामुद्दीन औलिया के नाम से जानते हैं. जो चिश्ती घराने के चौथे संत थे. निजामुद्दीन का जन्म 1236 में हुआ था.

निजामुद्दीन औलिया का शहर में इतना नाम हो गया कि सुलतान को एक फ़कीर से परेशानी होने लगी. पहले तो निजामुद्दीन औलिया को अदालत बुलाया गया. कई कोशिशों के बाद भी उन्होंने सत्ता से दूरी बनाए रखी. बताते हैं कि सुल्तान ने एक बार कहा था कि वो खुद निजामुद्दीन से मिलने आएंगे, इस पर निजामुद्दीन ने कहा कि उनके घर में दो दरवाजे हैं अगर सुल्तान एक दरवाजे से आएगा तो वे दूसरे दरवाजे से निकल जाएंगे.

1325 में दिल्ली का शासक गयासुद्दीन तुगलक सोनारगांव का युद्ध जीतकर दिल्ली वापस आ रहा था. सोनारगांव आज के समय में ढाका के करीब है. वापसी में गयासुद्दीन ने दिल्ली से लगभग 70 किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे अपना खेमा लगाया. खेमा लगते ही जश्न की तैयारियां शुरू होने लगी. ये वो वक्त था जब शहर में निजामुद्दीन के चर्चे सुलतान को चुभ रहे थे. गयासुद्दीन, निजामुद्दीन के बारे में एक शब्द नहीं सुनना चाहता था.

शहर का हर आदमी निजामुद्दीन के पास अपने दुख लेकर जाता था. गयासुद्दीन तुगलक ने सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के पास एक सन्देश भिजवाया. सन्देश में साफ़ था शहर में या तो सुल्तान रहेगा या फिर एक फ़कीर. सन्देश सुनकर औलिया ने शांत मन से कहा कि सुल्तान से जाकर कहो कि ‘हुनुज दिल्ली दूर अस्त’ यानि दिल्ली अभी दूर है.

गयासुद्दीन दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर था, जहां जीत का जश्न मनाया जा रहा था. जश्न के दौरान मस्त हाथी खेमे से जा टकराए. तभी अचानक गयासुद्दीन तुगलक भारी खेमे के नीचे दब गया और कभी दिल्ली लौट नहीं पाया. गयासुद्दीन तुगलक को लेकर निजामुद्दीन औलिया की कही बात कि दिल्ली अभी दूर है. सच साबित हुई. तब से ये कहावत प्रचलन में आ गयी.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here