करवा चौथ. हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ मनाया जाता है. इसे करक चतुर्थी भी कहा जाता है. करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं और रात में चाँद को देखकर वह अपना व्रत खोल देती है. यह त्यौहार देश के ज्यादातर हिस्सों में मनाया जाता है.

इस व्रत को लेकर कई कहानियां है. बताया जाता है कि जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी सावित्री ने उनसे अपने प्रति के प्राणों की भीख मांगी और निवेदन किया कि वह उसके सुहाग को न लेकर जाएं. लेकिन यमराज ने उनकी बात नहीं मानी. जिसके बाद सावित्री ने अन्न-जल त्याग दिया और अपने पति के शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी.

पतिव्रता सावित्री के इस तरह विलाप करने से यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि वह अपने पति सत्यवान के जीवन की बजाय कोई और वर मांग ले.

सावित्री ने यमराज से कई संतानों की मां बनने का वर मांग लिया और यमराज ने भी उस समय हां कह दिया. पतिव्रता होने के नाते सावित्री अपने पति सत्यवान के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, जिसके बाद यमराज के वचन में बंधने के कारण सवित्री को सत्यवान का जीवन सौंप दिया. कहा जाता है कि तभी से सुहागिन महिलायें अपने पति की लंबी उम्र और अपने अखंड सौभाग्य के लिए अन्न-जल त्यागकर करवा चौथ के दिन व्रत करती हैं.

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