करीब तेरह-चौदह साल पहले पति से अलग हुईं मालती के पास रहने के लिए जगह नहीं थी. अपने तीन माह के बेटे को लेकर ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज के बगल में दीवार से सटाकर टीन डालकर रहने लगीं. मेहनत मजदूरी जैसे काम भी किए. गुजारा नहीं हुआ तो ई-रिक्शा किराए पर लेकर चलाया. आमदनी हुई तो खुद का ई-रिक्शा खरीद लिया.

इसी आमदनी को धीरे-धीरे बेटे आलोक को हॉकी खिलवाई. बेटा देखते-देखते ही देश में सब जूनियर का बेहतरीन खिलाड़ी बन गया. मालती लखनऊ-बाराबंकी सीमा पर स्थित सफेदाबाद की रहने वाली हैं.

मालती बताती हैं कि शुरुआत में जब वह रिक्शा चलाने निकली तो उनके पिता खूब रोए. इसपर मालती ने उन्हें समझाया कि किसी काम में कोई बुराई नहीं है. लड़कियां अब मर्दों की तरह काम करती हैं. 2014 में उन्होंने खुद का रिक्शा ले लिया. तब से उनके परिवार का खर्च इसी से चल रहा है.

मालती ने बताया कि उनका सपना है कि बेटा खूब तरक्की करे. उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह उसे बढ़िया शिक्षा और कोई कोर्स करा पाती. ऐसे में घर से कुछ दूरी पर केडी सिंह बाबू सोसायटी की हॉकी अकादमी चलती है. इसमें ओलंपियन सैयद अली, सुजीत कुमार, साई प्रशिक्षक राशिद जैसे लोग ट्रेनिंग देते हैं. इसलिए बेटे को हॉकी खिलवाना शुरू किया. बेटा देखते-देखते बेहतरीन फारवर्ड बन गया. उत्तर प्रदेश की सब जूनियर हॉकी टीम का स्टार खिलाड़ी बन गया.

मालती की अब ख्वाहिश है कि उनका एक खुद का घर हो. जहां वह इज्जत की जिंदगी जिएं. बताया कि शुरुआत में जब रिक्शा चलाने की शुरुआत की तो रिक्शे वाले तरह-तरह की बातें करते थे. धीरे-धीरे इसकी आदत हो गयी. कभी नजरअंदाज किया तो कई बार करारा जवाब भी दिया.

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