राजस्थान के भरतपुर जिले में जिस पंचायत क्षेत्र में लड़कियां न तो डॉक्टर की पढ़ाई करती हैं न ही इंजीनियरिंग. ग्रेजुएशन और बीएड की पढ़ाई भी पिछले कुछ समय में लड़कियों ने शुरू की है. उस पंचायत से महज 24 साल की उम्र में शहनाज सरपंच बनीं, वो भी एमबीबीएस करने के बाद.
शहनाज जब कामा पंचायत की सरपंच बनीं तो उन्होंने नया कीर्तिमान रचा. वह कामा पंचायत की पहली एमबीबीएस सरपंच बनीं. वह जब सरपंच बनीं तब उनका एमबीबीएस की पढ़ाई का चौथा साल था.
अपने फैसले के बारे में शहनाज खान बताती हैं कि मेरी जिन्दगी अचानक बदल गयी. मुझसे पहले मेरे दादाजी भी यहां से सरपंच थे, लेकिन अदालत ने वो चुनाव ख़ारिज कर दिया था. उसके बाद से ही चुनाव में घर से कौन खड़ा होगा, इसकी चर्चा थी.
राजस्थान में सरपंच चुनाव में उतरने के लिए दसवीं पास होना जरुरी है. शहनाज के दादाजी पर सरपंच के चुनाव में फर्जी शैक्षणिक योग्यता का सर्टिफिकेट देने का आरोप था, जिसके बाद कामा का सरपंच चुनाव रद्द कर कर दिया गया था.
शहनाज कहती हैं कि मेरे सरपंच बनने से गांव में बेटियों की पढ़ाई लिखाई का स्तर बेहतर होगा. गांव के दूसरे मां-बाप भी सोचेंगे कि लड़कियों को क्यों न ज्यादा पढ़ाया जाए? इसकी शुरुआत मेरी मां ने की थी. वो पहली महिला प्रधान बनीं, जिन्होंने गांव से पर्दा प्रथा समाप्त की थी.