छुट्टी, ये शब्द ही सुनकर मन को सुकून मिलता है और चेहरे पर खुशी आ जाती है. भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में हर किसी को रविवार आने का इंतेजार रहता है क्योंकि रविवार के दिन अधिकतर लोगों की छुट्टी होती है. स्कूली बच्चों को भी रविवार का बेसब्री से इंतेजार रहता है.

रविवार का दिन भले ही छुट्टी का हो मगर इस दिन पूरे हफ्ते के पेंडिंग कामों को निपटाया जाता है. अधिकतर लोगों के लिए छुट्टी का मतलब होता है देर तक सोना, हालांकि सभी ऐसा करते करते हैं ये कहना गलत होगा.

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में रविवार के दिन छुट्टी कब से घोषित हुई और इसके पीछे किसकी अहम भूमिका है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं रविवार की छुट्टी का पूरा इतिहास.

बात उस समय की है तब भारत में अंग्रेजों का शासन हुआ करता था. अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मो सितम दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे. 1857 की क्रांति के 26 साल बाद मजदूरों के नेता मेघाजी लोखंडे ने मजदूरों के हक की आवाज बुलंद की और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी के लिए संघर्ष शुरू कर दिया.

इसके लिए उन्होंने तर्क दिया कि मजदूर सप्ताह में एक 6 दिन अपने मालिक औैर परिवार के लिए काम करता है तो एक दिन उसे देश व समाज की सेवा के लिए मिलना चाहिए. तकरीबन सात साल तक चले इस लंबे संघर्ष के बाद 10 जून 1890 को मेघाजी लोखंडे का ये प्रयास सफल हुआ और ब्रिटिश हुकूमत ने रविवार के दिन अवकाश घोषित कर दिया.

इतना ही नहीं लोखंडे के संघर्ष के कारण ही दोपहर में खाना खाने के लिए आधे घंटे का अवकाश मिलने लगा. उन्हें सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने साल 2005 में उनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया था.

1844 में अंग्रेज गर्वनर जनरल ने स्कूली बच्चों के लिए रविवार का अवकाश घोषित करने का आदेश पारित किया था. उनका मानना था कि इस दिन बच्चे कुछ रचनात्मक कार्य कर सके और अपने को आगे बढ़ा सकें.

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