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आईएएस, आईपीएस बनने का सबका सफर बहुत ही अलग और प्रेरणाओं से भरा होता है. हर किसी का ये सफर बेहद कठिनाईयों से भरा होता है, एक अधिकारी बनने के लिए आपको विषम परिस्थियों से होकर गुजरना पड़ता है. आपने भी ऐसे लोगों की काहनियों को सुना होगा. उन सभी प्रतिभागियों के पीछे उनके माता-पिता का खूब समर्थन होता है. वो माता-पिता और पारिवारिक लोगों के समर्थन द्वारा ही इस मुकाम पर पहुंचते हैं.

ये स्टोरी है बिल्कुल अलगः

लेकिन आज हम इस खबर में आपको जिसके बारे में बताने जा रहे हैं वो एक अनाथ लडकी थी. जिस पर ना तो मां का साया और ना ही बाप का. इसके बावजूद भी कठिन परिश्रम कर इस लड़की ने वो काम कर दिखाया जो आज की दुनिया में कोई भी करने के पहले सोचता है. उत्तराखंड़ करी रहने वाली मोनिका के माता-पिता की मृत्यु मार्ग दुर्घटना में हो गई थी.

उनका गांव देहरादून जिले के नाडा लाखामंडल में है परिजनों के ना होने के बावजूद उनके कठिन परिश्रम से उनको ये सफलता हासिल हुई है. मोनिका बचपन से ही बेहद होनहार लड़की थी. उनके माता-पिता का बचपन से ही सपना था कि उनकी बेटी एक दिन प्रशासनिक अधिकारी बनकर माता-पिता का नाम रोशन करे.

गौरतलब है कि मोनिका ने 5 वीं तक की पढ़ाई दून के स्कालर्स होम से की थी लेकिन एक दिन उनके जीवन में वो काला दिन आया जो उनके लिए सदमे जैसा था. साल 2012 में मोमिका के पिता गोपाल सिंह राणा और इंदिरा राणा एक मार्ग दुर्घटना का शिकार हो गए, जिसके बाद मोनिका अकेली सी रह गई. जिसके बाद उनकी बहन दिव्या राणा ने उन्हें संभाला और आगे की पढ़ाई के लिए लगातार उनका साथ दिया.

कक्षा 6 से 12 वीं तक की पढ़ाई उन्होंने सेंट जोसेफ स्कूल से की थी. उसके बाद उन्होंने मद्रास मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की पढाई की लेकिन माता-पिता का सपना था कि वो एक आईएएस अधिकारी बनें. इस कारण उन्होंने तैयारी को शुरु किया. 2015 में उन्होंने तैयारी को शुरु किया हालांकि लगातार दो बार उनको असफलता हाथ लगी जिसके बाद साल 2017 से उन्होंने श्रीराम सेंटर से कोचिंग शुरु की उनकी कड़ी मेहनत और लगन के चलते उन्हें साल 2018 में 577 वीं रैंक हासिल हुई.

गौरतलब है कि एक साक्षात्कार के दौरान मोनिका ने बताया कि उनकी सफलता के लिए उनको सभी ने बधाई दी, लेकिन जिन लोगों के सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई की आज वही इसस दुनिया में नहीं हैं.

मोनिका आईएएस अधिकारी तो बन चुकी थी लेकिन बधाई देने के लिए उनकी नजरें उनके मां बाप को ही ढूंढ रही थी और वो आंसू बहाकर अपना दुख जाहिर कर रही थी. आगे वो निराश होकर बताती हैं कि छोटी-छोटी खुशियों को बांटने के लिए भी परिवार और अपनों का साथ चाहते हैं लेकिन IAS बनने के बाद भी मेरी खुशियों में कोई शामिल नहीं हो पाया.

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