कृषि वैज्ञानिक पिंगली वैंकेया ने 22 जुलाई 1947 को भारतीय झंडा बनाया था. जिसे हम आजादी के दिन यानि 15 अगस्त और गणतंत्र दिवस पर फहराते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं साल 1907 में ही भारत की एक महिला ने विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज फहराया था.
यह झंडा हमारे मौजूदा ध्वज से अलग था. लेकिन मकसद एक ही था आजादी. वो पहली भारतीय महिला थीं भीखाजी कामा. इस झंडे को भीखाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में दूसरी इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में फहराया था. विदेशी धरती पर गर्व से और पूरे आत्मविश्वास के साथ झंडा फहराने के बाद भीखाजी कामा ने एक स्पीच दी, जिसे सुनकर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी.
सभा में जिन्होंने हिस्सा लिया था उन सभी देशों का झंडा लगा था. भारत के लिए जो झंडा लगा था वो ब्रिटिश का झंडा था. जिसे देखने के बाद मैडम भीखाजी कामा को अच्छा नहीं लगा. उन्होंने श्याम जी कृष्ण वर्मा के साथ मिलकर एक नया झंडा बनाया और सभा में सभी के झंडों के साथ फहराया.
उन्होंने कहा कि ऐ दुनियावालों देखो, यही है भारत का झंडा. यही भारत के लोगों का प्रितिनिधित्व करता है. इसे सलाम करो. इस झंडे को भारत के लोगों ने अपने खून से सींचा है. इसके सम्मान में रक्षा में जान दी है. मैं इस झंडे को हाथ में लेकर आजादी से प्यार करने वाले दुनियाभर के लोगों से अपील करती हूं कि वो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन करें.
भीखाजी कामा और श्याम जी कृष्ण वर्मा ने जो झंडा बनाया था उसमें हरे, पीले और लाल रंग की तीन पट्टियां थीं. सबसे ऊपर हरा रंग था. जिसपर आठ कमल के फूल बने हुए थे. ये आठ फूल उस वक्त भारत के आठ प्रान्तों को दर्शाते थे. बीच में पीले रंग की पट्टी थी. जिसपर वंदे मातरम लिखा था. सबसे नीचे नीले रंग की पट्टी पर सूरज और चांद बने थे. पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में ये झंडा अब भी सुरक्षित रखा है.
ब्रिटिश कालीन बॉमबे में एक पारसी परिवार में 24 सितम्बर 1861 को जन्म्दी भीखाजी कामा के पिता भीकाई सोराब जी पटेल थे. जो उस वक्त के पारसी समुदाय के जाने-माने शख्सियत थे.