डॉक्टर को भगवान का रूप माना जाता है. वाराणसी के डॉ. सुबोध कुमार सिंह अपने नेक कार्य से समाज में निस्वार्थ भाव से मदद करने का संदेश दे रहे हैं. वह कभी सड़कों पर ठेला लगाकर साबुन, चश्मे और अन्य सामान बेचकर परिवार का गुजारा करते थे. आज वह देश के लिए एक प्रेरणा हैं.

बचपन में ही डॉ. सुबोध कुमार के सिर से उनके पिता का साया उठ गया था. ऐसे में परिवार के जीवनयापन के लिए उन्हें सड़को पर साबुन चश्मा और दूसरी चीजें बेचनी पड़ी. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. संघर्ष का सामना किया और अपने बचपन के सपने को साकार कर दिखाया. देश के जाने माने सर्जन बने.

डॉ. सुबोध कुमार सिंह ने साल 1983 में मेडिकल एंट्रेंस पास किया. जिसके बाद उन्होंने BHU के इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में एडमिशन ले लिया. डॉक्टरी करने के बाद उन्होंने कई सालो तक सीनियर डॉक्टरों के पास ट्रेनिंग की. इसके बाद जब उन्हें कही नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने खुद ही प्रैक्टिस शुरू कर दी.

साल 2004 में डॉ. सुबोध ने एक बड़े मिशन की शुरुआत की थी. तब उन्होंने क्लेफ्ट लिप(CLEFT LIP) विकृत से ग्रस्त बच्चो की फ्री सर्जरी का बीड़ा उठाया. पिछले 18 सालों में हजारों बच्चों को उनकी मुस्कान लौटा चुके हैं. वह अब तक 37000 बच्चो की मुफ्त क्लेफ्ट लिप सर्जरी कर चुके हैं.

क्या है क्लेफ्ट लिप?

क्लेफ्ट लिप एक जन्मजात विकृति है, जिसमें जन्म से ही बच्चे के ऊपरी होंठ कटा हुआ होता है. ऐसे में नवजात शिशु को मां का दूध पीने में तकलीफ होती है. इसके अलावा उन्हें बोलने में भी तकलीफ होती है. इससे कई बच्चों के कानों में भी इन्फेक्शन फ़ैल जाता है. ऐसे में उनके बहरे होने का डर रहता है.

डॉक्टर सुबोध ने जब इस तरह के बच्चो की सर्जरी का बीड़ा उठाया तो बच्चो के माता-पिता के पास इलाज कराने के लिए पैसे तक नहीं थे. ऐसे में उन्होंने अमेरिकन एनजीओ स्माइल ट्रेन की मदद ली. डॉक्टर सुबोध जानते थे कि ये काम उनसे अकेले नहीं होगा. इसलिए वो नए डॉक्टरों को सर्जरी की ट्रेनिंग देने लगे. बाद में इन्हीं डॉक्टरों की मदद से उन्होंने हजारों बच्चों को नई जिंदगी दी. सर्जरी और डॉक्टरों की ट्रेनिंग का खर्चा स्माइल ट्रेन एनजीओ उठाता है.

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