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जीवन में सुख-दुख मानव जीवन का हिस्सा होता है कभी सुख आता है तो कभी दुखों को सामना करना होता है जीवन में अलग-अलग समय पर अलग-अलग परिस्थितियां होती हैं. कुछ लोग गरीबी में ही जीवनयापन करते हैं लेकिन जैसे -जैसे बड़े होते हैं तो कुछ कर गुजरने का प्रयास करते हैं तो वो सफल भी होते हैं.

एक ऐसे शख्स जिन्होंने ना ही गरीबी को मात दिया बल्क उन्होंने जिंदगी में एक नया मुकाम भी हासिल किया. उन्होंने जीवन में संघर्ष किया, इस दौरान अपनी गरीबी भी दूर की बल्कि एक बड़ी कंपनी खोलकर कई लोगों को रोजगार भी प्रदान किया.

बेंगलूरू के अनेक कल के एक छोटे से गांव में जन्म लेने वाले रेणुका आराध्य की. रेणुका के पिता पुजारी थे जिनका एकंमात्र जरिया आय का यही था.रेणुका के परिवार के पास कोई खास संपत्ति नहीं थी, केवल 1 एकड़ जमीन थी, जिस पर कुछ खास उगाया नहीं जा सकता था, रेणुका के तीन भाई-बहन थे. वे तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे, रेणुका का परिवार इतना गरीब था कि उन्हें अपना पेट पालने के लिए भीख मांगना पड़ता था.

छोटी सी उम्र में वे जब स्कूल से वापस लौटकर आते थे तो पिता जी के साथ भीख मांगने जाया करते थे. भीख मांगने के बाद उन्हें जो सामग्री प्राप्त होती थी उसी से परिवार का गुजारा होता था,. रेणुका का बड़ा भाई पढ़ाई करने के लिए बेंगलूरु चला गया जबकि रेणुका ने अपने परिवार के साथ ही रहने का फैसला किया.

स्कूली पढ़ाई के दौरान उनके पास स्कूल के फीस भरने के पैसे नहीं होते थे इस दौरान वहीं के शिक्षकों ने उनकी मदद की. पढ़ाई के दौरान ही उनको पिता के देहांत हो जाने की खबर मिली इस दौरान वे अपने गांव वापस लौट आए. मात्र 15 साल की उम्र में ही उन्होंने एक फैक्ट्री में कान करना शुरु कर दिया, इसके साथ ही रात में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे.

इसके अलावा वे एक प्रिंटिग सेटर में झाडू पोछा लगाने का काम करते थे. प्रिंटिग सेंटर के लोग उनके काम से काफी प्रसन्न हुए उन्हें प्रिंटिग और ऐप के लिए भी कार्य करने का मौका दिया. इसके बाद उन्होंने कंपनी बैग और सूटकेस बनाने वाली कंपनी में काम करना शुरु कर दिया धीरे-धीरे वे कंपनी में सेल्समैन बन गए. मेहनत के दम पर उन्होंने 6 गाड़ियां खरीदी.

इस दौरान उन्होंने सुना कि इंडियन सिटी टैक्सी नाम की कंपनी मंदी में जा रही है जिसके बाद उन्होंने अपनी कमाई द्वारा खरीद गई सभी गाड़ियों को बेच दिया और कंपनी को खरीद लिया. उन्होंने कंपनी की सारी कैब को प्रवासी कैब के तहत रजिस्टर करवा दिया. धीरे-धीरे 30 कैब से काम शुरु किया जो अब 300 तक पहुंच गई है. उनके पास बड़े-बड़े क्लाइंट थे. अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने 150 लोगों को रोजगार दिया. उनकी इस कंपनी का इस समय 38 करोड़ का टर्नओवर हो गया है.

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