तमिलनाडु के एक किसान पिछले कई सालों से अपनी खेती में बायो फ्यूल का इस्तेमाल कर रहे हैं. नागपट्टीनम के किलवेलूर तालुका के एक गांव के रहने वाले सी. राजशेखरन अपने खेत पर इंजन के लिए सुल्तान चंपा नामक पेड़ के तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे इस तेल से मोटरपंप की 5 एचपी मोटर को चलाते हैं.

राजशेखरन जिस जमीन पर खेती कर रहे हैं वह पहले बंजर जमीन हुआ करती थी. इसे उपजाऊ बनाने के लिए उन्होंने जैविक खेती के तरीके अपनाए. आज उनकी यह 5 एकड़ की जमीन पर 35 किस्म किस्म के पेड़ों का बाग़ है.

राजशेखरन बताते हैं करीब दस साल पहले हमारे इलाके में डीजल की बहुत समस्या थी. उस वक्त मुझे पता चला कि चेम्बूर में लोग सुल्तान चंपा का तेल वाहनों में इस्तेमाल कर रहे हैं. हमारे यहां नारियल का तेल भी इन कामों में इस्तेमाल किया जाता है. तब मेरे यहां भी सुल्तान चंपा के पेड़ थे और मैंने भी तराई करने का सोचा.

सुलतान चंपा को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. इसके फलों को सूखा कर उनमें से तेल निकाला जाता है. राजशेखरन ने बताया कि अगर किसी किसान के खेत में सुल्तान चंपा के दो पेड़ भी हैं तो वह डीजल की लागत कम कर सकता है.

सुल्तान चंपा का पेड़ जितना ज्यादा पुराना होता है, उतनी ही ज्यादा उपज देता है और इसकी छाँव भी बहुत अधिक होती है. यह मधुमक्खियों और चमगादड़ो को आकर्षित करता है.

बीजों को इकठ्ठा कर पहले दस दिन सुखाया जाता है. सूखने के बाद ये बीज टूटने लगते हैं और इनके अंदर से कर्नेल निकलता है. इस कर्नेल को दस दिन सुखाया जाता है. सुखाने के बाद इनमें से तेल निकाला जाता है. राजशेखर के मुताबिक एक किलो सुल्तान चंपा के बीजों से करीब 800 मिलीलीटर तेल निकलता है और इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं लगती

राजशेखरन अपने 5 एकड़ के खेत के लिए 5 एचपी मोटर पम्प का इस्तेमाल करते हैं. एक घंटे में 600 मिली तेल की खपत हो जाती है. उन्होंने बताया कि मुझे इस तेल को बायोडीजल कैसे बनाना है या नहीं पता था. मैंने इसे सीधा इस्तेमाल किया. डीजल और इस तेल में मुझे कोई खास फर्क नहीं लगा, बल्कि इसके इस्तेमाल से धुआं कम निकलता है.

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