पहले जब संशाधन नहीं था तो बल्ली, बांस और मिट्टी से कच्चा पुल बना लिया जाता था. फिर लोहे के कैप्सूल पुल बनाए जाने लगे. यह पुल मकर संक्रांति पर लगने वाले मेले का आकर्षक केंद्र रहता. लेकिन अब इस फ्लोटिंग पुल की भी हमेशा के लिए विदाई हो गयी है. अब इसकी जगह नए पक्के पुल ने ले ली है.

नरसिंहपुर में लगने वाले मकर संक्रांति के मेले में मुख्य आकर्षण यह अस्थायी रूप से बनाया जाने वाला फ्लोटिंग पुल ही हुआ करता था. लोहे के बैरल से बनाए जाने वाले इस पुल को नदी में खड़ा करने के लिए कई दिन तक काम चलता था. जिससे लोग सीढ़ी घाट से रेत घाट तक आना जाना करते थे.

मेला ख़त्म होने के बाद इसे हटा लिया जाता था. करीब दस सालों तक लोगों ने नर्मदा में तैरने वाले इस फ्लोटिंग पुल से इस पार से उस पार जाने का आनंद लिया. इस बार पहला मेला है जब लोग अब पक्के पुल से इधर से उधर जा रहे हैं.

1974 से लगातार इस मेले का आनंद ले रहे एक शख्स ने बताया कि पहले बल्ली, बांस एवं मिट्टी का कच्चा पुल बनता था फिर लोहे का कैप्सूल पुल बनाया जाने लगा. दोनों पुलों पर चलते समय मां नर्मदा की बहती धरा को निकट से देखने का आनंद ही कुछ और था.

वह बताते हैं कि 70 एवं 80 के दशक में बरमान में कमला सर्कस समेत मनोरंजन के कई अनोखे करतब देखने को मिलते थे. लोग दूर-दूर से बैलगाड़ी से आकर दो से तीन दिन ठहरते थे.

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