बर्फ़ के अंडे. शायद ही आपने पहले ये शब्द सुना होगा. बर्फ़ के अंडे को बर्फ़ की गेंद भी कहते हैं. इनका बनना एक बेहद ही दुर्लभ प्राकृतिक प्रक्रिया है. जबतक बिल्कुल अनुरूप मौसम ना हो यह अंडे नहीं बनते. आमतौर पर बर्फ़ के अंडे दुनिया में बेहद ठंडी जगहों पर ख़ास मौक़ों पर ही देखने को मिलते हैं. जैसे एस्टोनिया और साइबेरिया.

एस्तोनिया और साइबेरिया में तापमान माइनस 15 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच जाता है, तब इन अंडों का निर्माण होता है. लेकिन अंडे ऐसे नहीं बनते. बर्फ़ के अंडे समुद्र में जमा पतली बर्फ़ की परत से बनते हैं. तेज हवा और लहरों से बर्फ़ टूटती है. तापमान कम होने की वजह से ये एक दूसरे से चिपकते चले जाते हैं. लहरों के साथ आगे रोल करते हुए बढ़ते रहते हैं. सही तापमान और ठंडी हवा की वजह से जमती हुई बर्फ़ को चिपकाते रहते हैं.

ये गोले फिर किनारे आकर जमा हो जाते हैं. कई बार ये बड़े बोल्डर के आकार के बन जाते हैं. इनका गोलाकार बनना ही सबसे दुर्लभ प्रक्रिया मानी जाती है. साल 2016 में साइबेरिया के तटों पर ऐसे बर्फ़ के बड़े-बड़े अंडे देखे गए थे. इनमें से कई तो 3 फ़ीट तक चौड़े थे.

वैज्ञानिकों का कहना है कि बर्फ़ के अंडों का बनना दुर्लभ है लेकिन यह प्रक्रिया कुछ सालों के अंतराल पर दुनिया में कहीं ना कहीं देखने को मिल जाती है. आमतौर पर हर साल फ़िनलैंड के समुद्री किनारों पर ठंडी के मौसम में देखने को मिलती है. इसके अलावा अमेरिकन ग्रेट लेक्स में भी बर्फ़ के अंडे बनते हैं.

इन अंडों कई प्रकार के हो सकते हैं. यक़ीमारीमो. ये पतली बर्फ़ की परत के रोल से बनता है. स्नो रोलर. प्राकृतिक तौर से बनने वाले बर्फ़ के गोले जो पहाड़ों पर बनते हैं. वह भी तब जब बर्फ़ ऊपर से गिरते हुए नीचे आती है. तीसरे होते हैं स्नोबॉल बर्फ़ से बनाया गया आर्टीफिशियल होला. इसे इंसान अपने हाथ से बनाता है.

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