आईआईटी से मास्टर्स की डिग्री लेने वाले बनारस के विशाल सिंह ने लाखों की नौकरी छोड़ गरीब आदिवासियों व ग्रामीणों का जीवन सुधारने का निर्णय किया. अब तक विशाल हजारों किसानों का जीवन संवार चुके हैं. एक साधारण परिवार से आने वाले विशाल के पिता भी किसान ही थे.

12वीं के दौरान विशाल ने आईआईटी के लिए दो बार प्रयास किया लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. घर के हालात को देखते हुए किसी अन्य कॉलेज में एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया. लेकिन विशाल के मन से आईआईटी का सपना उतरा नहीं था.

उन्होंने ठान लिया कि ग्रेजुएशन न सही लेकिन मास्टर्स की पढ़ाई वह आईआईटी से ही करेंगे और ग्रेजुएशन के पहले साल से ही गेट की तैयारी में जुट गए. जिसके बाद गेट की परीक्षा दी तो पहले ही प्रयास में सफलता मिल गयी. रैंक अच्छी आई तो विशाल को आईआईटी खड़गपुर में दाखिला मिल गया. इस दौरान विशाल ने फ़ूड प्रोसेसिंग की पढ़ाई का फैसला किया.

पढ़ाई के दौरान विशाल खड़गपुर के आदिवासी इलाकों में जाते रहते थे. उनकी हालत देख विशाल ने 2013 में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नौकरी करने की बजाय गरीब किसानों की मदद करने का मन बना लिया, लेकिन एक समस्या थी उनके घर की आर्थिक स्थिति. ऐसे में विशाल ने शाहजहांपुर के एक राइसमिल में नौकरी करनी शुरू कर दी.

इसके बाद विशाल लगातार आसपास के किसानों से मिलने जाते थे, उन्हें ट्रेनिंग देते. समय के साथ विशाल की नौकरी बदल गयी. साल 2014 में उन्होंने ओडिशा के एक कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पढ़ाने का मौका मिला. यहां उन्हें आदिवासियों की मदद करने का मौका मिला. वह कॉलेज के बाद इन्हें खेती की ट्रेनिंग देने लगे.

इस दौरान विशाल को मौका मिला कि वह कॉलेज से ज्यादा वक्त गाँवों में बिता सकें. अपनी ट्रेनिंग के दौरान विशाल ने आदिवासियों के गांवों की रूपरेखा बदल दी. उन्होंने तालाब खुदवाए, सोलर सिस्टम लगवाए, गोबर गैस का प्लांट लगवाया और इंटीग्रेटेड फार्मिंग मॉडल पर काम शुरू किया. वह हर आदिवासी और गरीब परिवार सेमिलकर उन्हें खेती के बारे में जानकारी देने लगे. उन्हें मार्केटिंग के लिए भी प्रोत्साहित किया.

विशाल की मेहनत का असर दिखा और आदिवासियों की अच्छी कमाई होने लगी. यहां से विशाल ने निर्णय लिया और 2016 में नौकरी छोड़ दी. उन्हें दो दोस्तों का साथ मिला और मिलकर ग्राम समृद्धि नाम से एक ट्रस्ट की नींव रखी. इसमें उन्होंने आहार मंडल नाम से एक प्रोजेक्ट लांच किया और लोगों को जानकारी देना शुरू किया.

धीरे-धीरे विशाल के काम की तारीफ होने लगी. तब उन्हें ओएनजीसी की ओर से दस गांवों को स्मार्ट विलेज बनाने का प्रोजेक्ट मिला. जिसके बाद सालभर में ही उन्होंने इन गांवों को आत्मनिर्भर बना दिया. इस तरह विशाल का सफ़र अब भी जारी है.

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