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भारतीय समाज में अभी भी बेटियों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए कई तरह की बाधाओं को पूरा करना होता है. कई विषम परिस्थितियों से गुजरने के बाद वो अपने सपने को पूरा करने के लिए कदमों को आगे बढ़ाती हैं और सपनों को पूरा करती है.

लेकिन भारतीय समाज में आज भी एक बाधा सामने आती है. वो है सामंती सोच ऐसी सोच रखने वाले समाद को लड़कियों का 10 वीं और 12 वीं तक पढ़ना तो हजम हो जाता है लेकिन इसके बाद की पढाई को लेकर सवाल उठने लगते हैं. जब इसके आगे की पढ़ाई करने की बात होती है तो ये कह दिया जाता है कि इतना पढ़ लिखकर क्या करेंगी.

ऐसा समाज लड़कियों को आगे की पढ़ाई के लिए तो राजी होता लेकिन बाहर रहने की जब बात आती है तो अक्सर उन्हें अपने सपनों से समझौता करना होता है. इस तरह की कहानी आईएएस अनुराधा पाल की रही, जिन्हें पढ़ाई के लिए समाज से ही नहीं अपने घर वालों से भी संघर्ष करना पड़ा.

कुछ इस तरह की ही कहानी आईएएस अनुराधा पाल की रही जिन्हें पढाई के लिए समाज से ही नहीं घर वालों से भी संघर्ष करना पड़ा. लेकिन इस दौरान उनकी मां ने साथ दिया जो खुद तो नहीं पढ़ पाई लेकिन बेटी को पढ़ाने के लिए अपनों से ही लड़ी. उनकी मां ने तो यह कह दिया था कि अगर मेरी बेटी को इस घर में रहकर पढ़ने नहीं दिया जाएगा तो मैं घर को छोड़ दूंगी. अनुराधा की मां का ये संघर्ष बेकार नहीं गया, अनुराधा जब आइएएस आफीसर बनी तो पूरे गांव को उनकी मां पर गर्व हुआ.

हरिद्वार की रहने वाली अनुराधा बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थी. उनके पिता दूध बेचने का काम करते थे. जहां एक ओर माता अनपढ़ थी तो पिता पांचवी पास थी. घर में कोई पढ़ाई लिखाई का माहौल नहीं था. गांव में बाकी परिवार की तरह उनका परिवार भी यही चाहता था कि जल्द बिटिया बड़ी हो उसकी शादी कर फर्ज निभा लिया जाए.

अनुराधा शुरुआत से ही पढ़ने में तेज थी बिटिया के इस तरह के गुण को देखकर मां बेहद खुश होती थी. अनुराधा ने जब सरकारी स्कूल से पांचवी पास किया इसके बाद घर वालों ने नवोदय स्कूल में फार्म भरवाया और वो इस परीक्षा में भी पास हो गई लेकिन परिवार वालों को उनका बाहर जाना मंजूर नहीं था. लेकिन मां के इस तरह के रवैय्ये के बाद घर वाले राजी हो गए. वहां से अनुराधा ने 12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई की.

इसके बाद आईआईटी रुड़की में एडमिशन लिया. लोन लेकर पढाई की, इसके बाद उनका मन यूपीएससी परीक्षा में बैठने को मन बनाया. इसके लिए वो दिल्ली आ गई, यहां उन्होंने ट्यूशन पढ़ाया, अपना खर्चा उठाया. लगातार मेहनत के बल पर आज वो इस मुकाम पर है गांव वाले गर्व महसूस करते हैं.

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