प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती. अगर आपके अंदर टैलेंट है तो एक न एक दिन कामयाबी आपके कदम जरूर चूमेगी. कामयाबी में समय तो लग सकता है मगर ऐसा कम ही होता है कि प्रतिभा हो और कामयाबी न मिले. ऐसी ही कहानी है नवयुवा क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल की. यशस्वी ने वनडे क्रिकेट इतिहास में नया अध्याय लिख दिया.

कर्नाटक के अल्लूर में खेली जा रही विजय हजारे वनडे क्रिकेट टूर्नामेंट में यशस्वी ने मात्र 154 गेंदों पर ताबड़तोड़ 203 रन बना डाले. अपने दोहरे शतक के दौरान उन्होंने 17 चौके और 12 गगनचुंबी छक्के जड़े. ये मैच मुबई और झारखंड के बीच खेला जा रहा था.

जैसे ही यशस्वी के इस कारनामे की खबर फैली लोग चर्चा करने लगे. लोग कहने लगे कि भारतीय क्रिकेट में एक और बड़े सितारे ने अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है.

यशस्वी जायसवाल उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले भदोही के रहने वाले हैं. यशस्वी का जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा. उन्होंने ठेले पर फल और पानी पूरी तक बेची है. दस साल की उम्र में क्रिकेटर बनने का सपना पाले यशस्वी मुंबई पहुंचे और अपने रिश्तेदार के घर रहे.

यहां यशस्वी के अंकल संतोष का वर्ली में मकान था, लेकिन उनके लिए एक बच्चे को समायोजित करना मुश्किल हो चला था. इसके बाद यशस्वी एक डेयरी में रहने लगे, लेकिन दिन भर थकने के बाद यशस्वी सो जाते थे. ऐसे में मालिक ने उन्हें कलबादेवी स्थित डेयरी से निकाल दिया.

यशस्वी के अंकल संतोष मुस्लिम युनाइटेड क्लब में मैनेजर थे और उन्होंने मालिक से क्लब के टेंट के कमरे में यशस्वी के ठहरने की व्यवस्था करने का अनुरोध किया. यहां यशस्वी ने तीन साल तक ग्रांउंड्समैन (मैदानकर्मियों) के साथ टेंट का कमरा साझा किया.

वह खुद अपना खाना बनाते और जरूरत के संसाधनों जुटाने के लिए यशस्वी को आजाद मैदान में रामलीला के दौरान पानी-पूरी और फल बेचने वालों के साथ काम करने को भी मजबूर होना पड़ा. ऐसे भी कई दिन आए, जब उन्हें बिना खाना खाए हुए ही सोना पड़ा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here