देश की सर्वोच्य अदालत ने शनिवार को शाहीनबाग धरने के मामले में पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए पिछले साल अक्टूबर में इस मामले को दिए गए फैसले को बरकरार रखा है. अदालत ने कहा कि लोग अपनी मर्जी से कहीं पर भी धरना नहीं दे सकते.

सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि किसी की विषय पर विरोध जताने के लिए धरना प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है लेकिन उसकी भी एक सीमा तय है. धरना कभी भी कहीं पर भी नहीं दिया जा सकता.

बता दें कि सुप्रीमकोर्ट ने बीते साल अक्टूबर के महीने में फैसला सुनाया था कि धरना प्रदर्शन के जगह चिन्हित होनी चाहिए. अगर कोई व्यक्ति या समूह इससे बाहर धरना प्रदर्शन करता है तो नियम के मुताबिक पुलिस के पास प्रदर्शनकारियों को हटाने का अधिकार है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि धरना प्रदर्शन से आम लोगों की जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए. धरने के लिए सार्वजनिक स्थल पर कब्जा नहीं किया जा सकता. सुप्रीमकोर्ट ने अपने फैसले में सीएए और एनआरसी के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग में हुए प्रदर्शन को गैर कानूनी करार दिया था.

अदालत के इसी फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. बता दें कि पिछले साल दिल्ली के शाहीनबाग में सीएए और एनआरसी के खिलाफ सड़क पर ही विरोध प्रदर्शन हुआ था.

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