उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृंदावन में श्री कृष्ण और राधा की लीलाओं के रहस्य छिपे हुए हैं. यहां कदम-कदम पर भगवान श्री कृष्ण और राधा के मंदिर हैं. इन सब के बीच वृंदावन में एक ऐसा मंदिर है जिसकी मान्यता लोगों के बीच कम नहीं थी. इस मंदिर को जमाई ठाकुर के नाम से जानते हैं.
बंगाल की राजधानी ढाका के पास एक जिला है पवाना. जहां तराश तहसील के जमींदार थे बनवारी लाल. उनके यहां ठाकुर जी विराजमान थे. इनकी पूजा यहां हुआ करती. यह परंपरा वहीँ से चली आ रही है.
क्या है परंपरा ?
ऐसा मानते हैं कि यहां ठाकुर जी नदी से प्रकट हुए है और एक ब्राह्मण ने प्रकट किया है. ब्राह्मण को सपना आया कि तुम स्नान के वक्त नदी में मुझसे टकरा जाते हो, लेकिन मेरा उध्दार नही करते हो. इस सपने के बाद ब्राह्मण ने भी स्मरण किया कि जब मैं स्नान करता हूं तो कोई लकड़ी जैसी चीज मुझसे टकराती है. अगले दी जब ब्राह्मण ने देखा तो भगवान श्रीकृष्ण जी की दिव्य और भव्य प्रतिमा थी.
कुछ साल तक वह भगवान श्रीकृष्ण के पास रहे. फिर उन्हें सपने में आया कि मुझे राजा के पास जाना है. ब्राह्मण जब राजा के पास भगवान श्रीकृष्ण जी की प्रतिमा लेकर गया तो राजा बहुत प्रसन्न हुआ. राजा की एक लड़की थी जो राजा भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थी. बच्ची द्वारा ठाकुर जी की सेवा करते देख हर कोई हैरान रहता था. कुछ सालो बाद राजा को एक सपना आया. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण जी ने कहा कि 1 साल बाद मैं तुम्हारी लड़की को अपने पास बुला लूंगा. साथ ही श्रीकृष्ण भगवान ने एक पेड़ बताया और कहा कि उस पेड़ की लकड़ी से राधा-रानी की मूर्ती बनवाओ. राजा द्वारा बनवाई गयी मूर्ती आज भी मंदिर में स्थापित है.
जमाई राजा
बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए पेड़ की लकड़ी से बनी प्रतिमा और राजा की लड़की के साथ ठाकुर जी का विवाह हुआ था. विवाह के बाद 8 पीढ़ियों तक किसी भी कन्या की शादी से पहले ठाकुर जी के साथ उसका विवाह होता था. फिर चुने गए लड़के साथ शादी होती थी. इस लिहाज से भगवान श्रीकृष्ण जमाई राजा हो गए. ऐसे में जमाई राजा का ससुराल में मान सम्मान होता है. तभी से ठाकुर जी के सामने हुक्का-पानी रखा जाने लगा. तब से हुक्का पानी रखने की परम्परा शुरू हो गयी.
मंदिर के सेवारत पुजारी उज्जैन शर्मा के मुताबिक मंदिर का निर्माण 1875 में हुआ था. बताया जाता है कि बंगाल में ठाकुर जी का मंदिर 52 बीघा में बना हुआ था. जिसमें 110 कमरे बने हुए थे. वहां छप्पन भोग लगते. भगवान श्रीकृष्ण के रथ में लगे हुए घोड़े 2 किलो घी प्रति दिन खाते थे. ठाकुर जी गंगाजल से अपनी बग्गी को धोकर बंगाल भ्रमण करने के लिए निकलते थे. आज भी बंगाल से यहां हजारों यात्री प्रतिवर्ष जमाई ठाकुर के दर्शन के लिए आते हैं.