जिलाधिकारी(डीएम) बनने के लिए अभ्यर्थियों को यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा पास करनी होती है. परीक्षा में अच्छी रैंक लाने वाले अभ्यर्थियों का चयन आईएएस के लिए होता है. जिन अभ्यर्थियों की रैंक उससे नीचे होती है उनका चयन आईपीएस के लिए होता है. इसी तरह इससे कम रैंक लाने वाले अभ्यर्थियों का चयन अन्य पदों के लिए होता है.

एक आईएएस अधिकारी की पदोन्नति की जाती है और उसे जिला न्यायधीश अथवा जिलाधिकारी बनाया जाता है. जिलाधिकारी जिले में कानून और व्यवस्था के रखरखाव के लिए जिम्मेदार होते हैं. वह आपराधिक प्रशासन के मुखिया हैं और जिले के सभी कार्यकारी मजिस्ट्रेटों की देखरेख करते हैं. पुलिस के कार्यों को नियंत्रित करते हैं.

जिला मजिस्ट्रेटों के पदों पर अभ्यर्थियों का चयन प्रीलिम्स, मेंस और इन्टरव्यू के आधार पर किया जाता है. जिला मजिस्ट्रेट जिले का वरिष्ठ अधिकारी होता है, इसलिए जिलाधिकारी की अच्छी सैलरी होती है. 7वें वेतनमान के मुताबिक जिलाधिकारी की सैलरी एक लाख से 1.5 लाख रूपये प्रति महीने होती है. इसके अलावा जिलाधिकारी को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं, जिनमें बंगला, गाड़ी, सुरक्षागार्ड, फोन आदि शामिल हैं. जिलाधिकारी को सैलरी के अलावा कई भत्ते भी दिए जाते हैं.

उप-विभागीय अधिकारी(एसडीएम)

उपविभागीय अधिकारी अपने उपखंड में एक लघु जिला मजिस्ट्रेट है. कई राजस्व कानून के तहत एसडीएम में कलेक्टर की शक्तियां ही निहित होती हैं. एसडीएम की सैलरी 50 से 60 हजार रूपये प्रतिमाह होती है. इसके अलावा वेतन भत्ते अलग से दिए जाते हैं.

वहीं तहसील के प्रभारी अधिकारी को तहसीलदार कहा जाता है. तहसीलदार और एक नायब-तहसीलदार के राजस्व और मजिस्ट्रेटिक कर्तव्यों में कोई अंतर नहीं होता है. राजस्व मामलों में दोनों सहायक कलेक्टर, ग्रेड सेकेण्ड की शक्तियों का उपयोग सर्कल राजस्व अधिकारियों के रूप में करते हैं.

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